Dhyan Chand Biography in Hindi | मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय - MY THINKING

Dhyan Chand Biography in Hindi | मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय

Dhyan Chand- हॉकी के जादूगर नाम से प्रसिद्ध मेजर ध्यानचंद एक बेहतरीन भारतीय हॉकी खिलाड़ी थे | जिनके गोल करने की कला बहुत अदभुत थी | उनकी हॉकी से गेंद इस तरह चिपकी रहती थी कि विरोधी टीम को यह लगता था कि उनके पास कोई अलग हॉकी है ! उनकी खेलने की कला सबसे निराली थी जिस वजह विरोधी टीम अक्सर उनके सामने घुटने टेकती हुई नज़र आती थी ! हॉकी के इतिहास मे मेजर ध्यानचंद जहां तक पहुँच गए थे वहां तक न तो अभी तक कोई पहुँचा है और न ही पहुँच सकता है ! हॉकी के खेल में मेजर ध्यानचंद ने लोकप्रियता का जो कीर्तिमान स्थापित किया है उसके आस पास भी दुनिया का कोई खिलाड़ी नहीं पहुँच सका ! हॉकी के खेल में मेजर ध्यानचंद जैसा खिलाड़ी न तो हुआ है और शायद ही कभी कोई हो पाए ! वे जितने बड़े खिलाड़ी थे उतने ही महान इंसान भी थे ! हॉकी के इस जादूगर का असली नाम ध्यान सिंह था ! जब 16 साल की उम्र में ध्यान चंद ने आर्मी ज्वाइन की जहां काम के साथ ध्यान चंद ने हॉकी खेलना भी शुरू किया ! लेकिन वह काम के कारण दिन में हॉकी नहीं खेल पाते थे जिस कारण उन्होंने रात में चाँद की रौशनी में हॉकी खेलने का अभ्यास शुरू किया ! यह देख कर उनके साथी खिलाड़ी उन्हें प्यार से चंद के नाम से पुकारने लगे तभी से ध्यान सिंह का नाम ध्यान चंद पड़ गया ! 29 अगस्त को मेजर ध्यान चंद का जन्मदिन भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है ! और भारत के राष्ट्रपति द्वारा उन्हें राजीव गाँधी खेल रत्न, अर्जुन और द्रोणाचार्य अवार्ड से इसी दिन सम्मानित भी किया गया है | ध्यान चंद ने भारत को लगातार तीन बार ओलिंपिक में स्वर्ण पदक दिलवाया है | यह वह समय था जब भारत की हॉकी टीम पूरे विश्व में सबसे बेहतरीन टीम हुआ करती थी | ध्यान चंद का गेंद पर कण्ट्रोल अमेजिंग था जिस वजह से उन्हें "दी विज़ार्ड" भी कहा जाता था !
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Dhyan Chand Biography in Hindi | मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय

ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहबाद जो अब प्रयागराज नाम से जाना जाता है के साधारण से राजपूत परिवार में हुआ था | ध्यानचंद के पिता का नाम रामेश्वर दत्त सिंह और माता का नाम श्रद्धा सिंह है | ध्यानचंद के बचपन में कोई स्पोर्ट्समैन के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते थे इसलिए कहा जा सकता है कि हॉकी के खेल की प्रतिभा जन्मजात से नहीं थी बल्कि हॉकी के खेल में उन्होंने जो महारत हासिल की है वो सिर्फ उनकी मेहनत, अभ्यास  संघर्ष और साधना का फ़ल है | ध्यानचंद के पिता ब्रिटिश इंडियन आर्मी में एक सूबेदार के रूप में कार्यरत थे और हॉकी भी खेला करते थे | ध्यानचंद के दो भाई भी थे मूल सिंह और रूप सिंह | रूप सिंह भी ध्यानचंद की तरह हॉकी खेला करते थे | ध्यानचंद के पिता आर्मी में होने की वजह से उनका तबादला कभी कहीं तो कभी कहीं होता रहता था जिस वजह से ध्यानचंद अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सकें और सिर्फ कक्षा 6 तक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी | कालांतर में ध्यानचंद का परिवार इलाहबाद से झाँसी आ गया | 

Early Life of Dhyan Chand | ध्यानचंद का शुरूआती जीवन

अपने शुरूआती जीवन में ध्यानचंद को हॉकी में कोई दिलचस्पी नहीं थी | ध्यानचंद को रेसलिंग बहुत पसंद थी | हॉकी को उन्होंने अपने आस पास के दोस्तों के साथ खेलना शुरू किया जो पेड़ की डालो से हॉकी स्टिक और पुराने कपड़ो से गेंद बनाकर खेला करते थे | एक दिन वह अपने पिता के साथ हॉकी का मैच देखने गए वहाँ एक टीम दो गोल से मैच हार रही थी | यह देख ध्यानचंद ने अपने पिता से कहा वो हारने वाली टीम के लिए खेलना चाहते हैं | वह मैच आर्मी वालो का था | ध्यानचंद के पिता ने उन्हें इजाज़त दे दी | उन्होंने उस मैच में ध्यानचंद ने चार गोल किये | उनके इस शानदार आत्मविश्वास से भरे खेल को देख आर्मी ऑफिसर काफ़ी ख़ुश हुए और उन्हें आर्मी ज्वाइन करने को कहा | साधारण शिक्षा प्राप्त कर चूके ध्यानचंद महज़ 16 की उम्र में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भर्ती हो गए | जब फर्स्ट ब्राह्मण रेजीमेंट में भर्ती हुए तब उनके मन हॉकी के लिए ऐसी कोई भावना नहीं थी कि वह एक हॉकी प्लेयर बने | ध्यानचंद को हॉकी के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर तिवारी को जाता है | मेजर तिवारी खुद भी हॉकी प्रेमी और एक शानदार खिलाड़ी थे | उनकी देख रेख में मेजर ध्यानचंद हॉकी खेलने लगे | और हॉकी के खेल को बारीकी से समझने लगे | पंकज गुप्ता ध्यानचंद के पहले कोच कहे जाते हैं जिन्होंने ध्यानचंद ke खेल को देख कर कह दिया था कि यह एक दिन दुनियां में चाँद की तरह चमकेगा | और देखते ही देखते मेजर ध्यानचंद दुनियां के सबसे महान खिलाड़ी बन गए !


Dhyan Chand Career | ध्यानचंद का करियर

ध्यानचंद शुरू में आर्मी की टीम की तरफ से खेला करते थे | जहाँ उन्होंने अच्छा खेल खेलकर काफ़ी नाम कमाया | ध्यानचंद के खेल के ऐसे बहुत से पहलु थे जहाँ उनकी खेल की प्रतिभा को देखा गया एक मैच में उनकी टीम 2 गोल से हार रही थी | ध्यानचंद ने आखिरी 4 मिनट में 3 गोल करके अपनी टीम को जिताया | यह पंजाब टूर्नामेंट मैच झेलम में हुआ था इसके बाद ध्यानचंद को हॉकी का विज़ार्ड कहा गया | ध्यानचंद ने 1925 में पहला नेशनल हॉकी मैच खेला था, इस मैच में विज, पंजाब, उत्तरप्रदेश, बंगाल, राजपुताना और मध्य भारत ने हिस्सा लिया था | इस टूर्नामेंट में उनकी परफॉरमेंस को देखने के बाद उनका सेलेक्शन भारत की इंटरनेशनल हॉकी टीम में हो गया | ध्यानचंद को फुटबॉल के पेले और क्रिकेट के ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है | 1926 में न्यूज़ीलैंड में होने वाले एक टूर्नामेंट के लिए ध्यानचंद का चुनाव हुआ | यहां एक मैच के दौरान भारत ने 20 गोल किये जिसमें 10 गोल ध्यानचंद ने किये थे | इस टूर्नामेंट में भारत ने 21 मैच खेले थे जिसमें से 18 में भारत को जीत हासिल हुई थी एक में हार हुई थी और 2 मैच ड्रा रहें थे | इस पूरी टूर्नामेंट में भारत ने 192 गोल मारे थे जिसमें से अकेले 100 गोल ध्यानचंद ने मारे थे | यहाँ से लौटने के बाद ध्यानचंद को आर्मी का लांस नायक बना दिया गया | 1927 में लंदन फोल्कस्टोन फेस्टिवल में भारत ने 10 मैच खेलकर 72 गोल किये जिसमें से 36 गोल ध्यानचंद ने किये थे | ध्यानचंद ने तीन ओलिंपिक खेलो में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा तीनो बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया | उनके आंकड़ों से पता चलता है कि वह वास्तव में हॉकी के जादूगर ही थे | भारत ने 1932 में 37 मैचों में 338 गोल किये जिसमें 133 गोल ध्यानचंद ने किये थे | दूसरे विश्व युद्ध से पहले ध्यानचंद ने 1928 एम्सटर्डम 1932 लॉस एंजिल्स और 1936 बर्लिन में लगातार तीन ओलिंपिक में भारत को गोल्ड मेडल दिलाए | दूसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ होता तो वह 6 ओलिंपिक में शिरकत करने वाले दुनिया के संभवतः पहले खिलाड़ी होते और इस बात में शक की कोई गुंजाईश नहीं कि यह गोल्ड मेडल भी भारत के ही नाम होता ! 1928 में एम्स्टर्डम ओलिंपिक गेम में भारतीय टीम का फाइनल मैच नीदरलैंड के साथ हुआ था | जिसमें 3 गोल में से 2 गोल ध्यानचंद ने मारे थे | और भारत को पहला स्वर्ण पदक जिताया था | 1932 में लॉस एंजिल्स ओलिंपिक गेम में भारत का फाइनल मैच अमेरिका के साथ हुआ जिसमें भारत ने रिकॉर्डतोड़ 23 गोल किये थे और 23-1 से जीत हासिल कर स्वर्ण पदक जीता था | यह एक वर्ल्ड रिकॉर्ड था जो कई सालो बाद जाकर 2003 में टूटा था | उन 23 में से अकेले 8 ध्यानचंद ने मारे थे | 1932 बर्लिन ओलिंपिक गेम में लगातार तीन टीम हंगरी, अमेरिका और जापान को ज़ीरो गोल से हराया था ! इस इवेंट के सेमीफाइनल में भारत ने फ्रांस को 10 गोल से हराया था | जिसके बाद भारत का फाइनल मैच जर्मनी के साथ हुआ था | इस मैच में इंटरवल तक भारत के खाते में एक गोल आया था इंटरवल के बाद ध्यानचंद ने अपने जूते उतार दिए थे और नंगे पैर ही गेम को आगे खेला और 8-1 से जीत हासिल की, और स्वर्ण पदक भारत के नाम हुआ ! ध्यानचंद की प्रतिभा को देख जर्मनी के अडोल्फ हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मनी आर्मी हाई पोस्ट पर आने का ऑफर दिया | लेकिन ध्यानचंद को अपने देश से बहुत प्रेम था उन्होंने ये ऑफर ठुकरा दिया था | मेजर ध्यानचंद इंटरनेशनल हॉकी को 1948 तक खेलते रहें | इसके बाद 42 साल की उम्र में उन्होंने रिटायरमेंट ले लिया | इसके बाद ध्यानचंद आर्मी में होने वाले हॉकी मैचों को खेलते रहें और 1956 तक उन्होंने हॉकी स्टिक को अपने हाथों में थामे रखा | मेजर ध्यानचंद ने अपने पूरे करियर में  तकरीबन 1000 से भी ज़्यादा गोल किये थे |  जिनमें से 400 उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये थे, कहा जाता है कि मैच के दौरान गेंद हर समय ध्यानचंद की स्टिक से चिपकी रहती थी | यह देखकर दर्शक आश्चयर्चकित रह जाते थे | लेकिन कुछ अधिकारियो को को बीच में संदेह होने लगा कि कहीं ध्यानचंद की स्टिक मे कोई ऐसी वस्तु तो नहीं लगी जो बराबर गेंद को अपनी ओर  खींचे जाती है | बात बढ़ गई और शंका-समाधान आवश्यक समझा गया | ध्यानचंद को दूसरी स्टिक से खेलने को कहा गया लेकिन ध्यानचंद दूसरी स्टिक से भी दनादन गोल करने शुरू कर दिए, तब लोगो को समझ आया कि यह जादू स्टिक का नहीं बल्कि ध्यानचंद की कलाइयों का है |  तभी से लोगो ने ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहना शुरू कर दिया ! केवल हॉकी के खेल के कारण ध्यानचंद की सेना मे पदोन्नति होती गई ! 1938 में उन्हें वायसराय का कमीशन मिला और वे जमादार बन गए | उसके  बाद एक के बाद एक दूसरे सूबेदार, लेफ्टिनेंट और कैप्टन बनते चले गए | फिर बाद में उन्हें मेजर बना दिया गया !

Dhyan Chand Awards And Achievements | ध्यानचंद के पुरस्कार और उपलब्धियां

1956 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया | उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया | इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं | भारतीय ओलिंपिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया !
वे उन तीनो भारतीय टीम के सदस्य थे  जिन्होंने 1928, 1932 और 1936 के ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीता था | मेजर ध्यानचंद की याद में डाक टिकट शुरू की गई | दिल्ली में ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम का निर्माण कराया गया | किसी भी खिलाड़ी की महानता को गिनने का सबसे बड़ा पैमाना यही है कि उस खिलाड़ी के साथ कितनी घटनाए जुड़ी है | उस हिसाब से तो मेजर ध्यानचंद का कोई जवाब ही नहीं है | हॉलैंड में तो लोगो ने उनकी स्टिक तुड़वाकर देख ली थी कि कहीं उसमें चुम्बक तो नहीं | यही घटनाए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमें उनकी लोकप्रियता को दर्शाती हैं | उन जैसा खिलाड़ी भारतीय हॉकी खेल में न कोई था न है और न ही कोई हो सकता है !


Death of Dhyan Chand | ध्यानचंद की मृत्यु

मेजर ध्यानचंद के आखिरी दिन बिलकुल भी अच्छे नहीं गए | ओलिंपिक में देश को स्वर्ण पदक दिलाने के बावजूद देश ने उनको भुला दिया था | चोथाई सदी तक विश्व हॉकी जगत के शिखर पर जादू की तरह छाए रहने वाले मेजर ध्यानचंद को 3 दिसंबर 1979 को सुबह चार बजकर पच्चीस मिनट पर नई दिल्ली के AIIMS  हॉस्पिटल में देहांत हो गया | झाँसी में उनका अंतिम संस्कार किसी घाटी पर ना कराकर उस मैदान पर किया गया जहाँ वे हॉकी खेला करते थे | अपनी आत्मकथा गोल में उन्होंने लिखा था | "आपको मालूम होना चाहिए मैं बहुत साधारण आदमी हूँ" ! वो साधारण आदमी नहीं थे लेकिन गए बिल्कुल साधारण आदमी की तरह !



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